हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ बेटियां शची रति दुर्गा लक्ष्मी और सरस्वती बनें ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
☆ बेटियां शची रति दुर्गा लक्ष्मी और सरस्वती बनें ☆
बेटियां जब आतीं घर आंगन महकातीं,
जब वह चिड़ियों सा चहकतीं गुनगुनाती।
मन के घर आंगन में निज प्यार बिखेरतीं,
अपना होने का निरंतर अहसास दिलातीं।।
पैदा होते ही वो जनक की जानकी बनतीं,
राम की सीता कृष्ण की राधा बन जातीं।
प्रतीक होतीं मां बाप के आन बान शान की,
फिर किसी और के घर की शान बन जातीं।।
बेटियां तो पिता की आंखों का तारा,
मां के हृदय में ही सदा रहा करतीं।
देर जब हो जाए उनके आने में घर,
मां बाप की चिंता भी बना करतीं।।
इस सृष्टि की भी वही तो सृष्टा होतीं,
आंचल में दूध आंखों में पानी रखतीं।
ससुराल जा कर भी बाबुल की होतीं,
मां बाप का गौरव बन सम्मान बढ़ातीं।।
बेटियां कभी श्रुति तो कभी सृष्टि होतीं,
तन से ससुराल पर मन से मायके होतीं।
तन से कठोर पर मन से कोमल बनतीं,
पर छुप छुप कर बाबुल के लिए रोतीं।।
ससुराल में जब बेटियां दु:खी रहतीं,
मा बाप के हृदय में शूल चुभता रहता।
जब बेटियां ससुराल में सुखी रहतीं,
मां बाप का हृदय सदा खिला रहता।।
बेटियां दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती बनतीं,
तो मां बाप निश्चिंत हुआ करते हैं।
जब बेटियां अबला बन जातीं हैं तो,
मां बाप सदा चिंतित रहा करते हैं।।
दहेज, शोषण, घरेलू हिंसा न होंगे नियंत्रित,
यदि बेटियां अपने पैरों पर खड़ी नहीं होंगी।
लालची जुआरी चरित्रहीन करेंगी नियंत्रित,
जब बेटियां सशक्त और आत्म निर्भर होंगी।।
बेटियां शची रति दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती बने,
निज मां बाप की आन बान और शान बने।
उन्हें अबला बन कर जीते तो ज़माना बीता,
अब वे सबल बन राष्ट्र का अभिमान बनें।।
© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव