महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.५०॥ ☆
भूयश्चाह त्वम अपि शयने कण्ठलग्ना पुरा मे
निद्रां गत्वा किम अपि रुदती सस्वरं विप्रबुद्धा
सान्तर्हासं कथितम असकृत पृच्चतश च त्वया मे
दृष्टः स्वप्ने कितव रमयन काम अपि त्वं मयेति॥२.५०॥
कहा है पुनः मम प्रिये कण्ठलग्ना
कभी सो रही साथ मेरे शयन में
जगाई गई क्योंकि जब रो पडी थी
अचानक सस्वर देखकर कुछ सपन मे
तो मेरे फिर फिर तब पूंछने पर
कहा था तुम्हीं ने विहंसकर जतन से
देखा किसी के साथ रतिकेलि करते
तुम्हे है छली स्वप्न में इन नयन ने
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈