महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.५४॥ ☆
एतत्कृत्वा प्रियमनुचितप्रार्थनावर्तिनो मे
सौहार्दाद्वा विधुर इति वा मय्यनुक्रोशबुद्ध्या ।
इष्टान्देशाञ्जलद विचर प्रावृषा संभृतश्रीर्मा
भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता विप्रयोगः॥२.५४॥
अतः मित्र के भाव से या तरस से
या यह सोच यह जन वियोगी विकल है
क्रके कृपा इस मेरी प्रार्थना पर
जो अनुचित भले पर विनत है सबल है
प्रिय कार्य को पूर्ण करके जलद तुम
करो स्वय संचार इच्छा जहाँ हो
वर्षा विवर्धित लखो देख संपूर्ण
तुम दामिनी से कभी दूर न हो।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈