॥ श्री रघुवंशम् ॥

महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम् ” हिन्दी पद्यानुवाद #  ॥ श्री रघुवंशम कथासार ॥ ☆

(प्रिय प्रबुद्ध पाठक गण – अभिवादन! आपने अब तक प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी के सत्साहित्य श्रीमद्भगवतगीता एवं महाकवि कालिदास रचित मेघदूतम का पद्यानुवाद आत्मसात किया। आज से हम आपके साथ महाकवि कालिदास रचित महाकाव्य रघुवंशम का पद्यानुवाद साझा करेंगे। आशा है हमें आपका ऐसा ही अप्रतिम स्नेह एवं प्रतिसाद  मिला रहेगा।)   

कथासार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव

रघुवंश महाकाव्य कवि कुल गुरू कालिदास की एक प्रमुख तथा प्रौढ़ रचना है . मेघदूत महाकवि की कल्पना की उड़ान का दर्शन कराता है । अभिज्ञान शाकुंतलम् अप्रतिम नाटक है किन्तु रघुवंश और कुमारसंभव उनके वर्णन प्रधान महाकाव्य हैं । जिनमें कल्पना के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन , मनुष्य के विभिन्न मनोभावों का चित्रण , आदर्श स्थापना और उसके पाने के मानवीय प्रयासों के साथ ही सामाजिक परिवेश में स्वाभाविक कमजोरियों का भी दर्शन होता है । रघुवंश में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में आश्रमों का महत्व , गौ – भक्ति , राजा का अभीष्ट आचरण , दानशीलता , शूरवीरता , जन्मोत्सव , स्वयंवर समारोह , दाम्पत्य प्रेम , युद्ध क्षेत्र का वर्णन , वनस्थलों की शोभा , सरल हृदय ऋषि कन्याओं की वृक्षों और मृग छौनों से सहज आत्मीयता और मृत्यु के दारूण दुख पर संसार की असारता का बोध और स्वजन के वियोग में करूण रूदन आदि जीवन की अनेकानेक मनोदशाओं का सुंदर मधुर भाषा में चित्रण है ।

अपने नाम के अनुकूल ही संपूर्ण ग्रंथ इक्क्षाशु वंश के राजा रघु के वंश का वर्णन है । इसमें विभिन्न राजाओं के जीवन काल की घटनाओं का क्रमिक उल्लेख है । रघुवंश में कुल 19 सर्ग हैं । संक्षेप में प्रत्येक सर्ग का कथ्य इस प्रकार है ।

सर्ग 1 – राजा दिलीप पुत्रहीन होने के कारण दुखी हैं । पुत्र कामना से वे अपनी पत्नी सुदक्षिणा सहित कुल गुरू वशिष्ठ के आश्रम को प्रस्थान करते हैं । पुत्र प्राप्ति हेतु गुरुवर , कामधेनु की पुत्री नंदिनी , जो उनके आश्रम में धेनु है , की सेवा करने का परामर्श देते हैं ।

सर्ग 2 – राजा दिलीप और रानी सुदक्षिणा भक्ति भाव से श्रद्धापूर्वक गुरु की गौ , नंदिनी की सेवा में रत हो जाते हैं । नंदिनी को वनचारण के लिए प्रतिदिन ले जाते हैं और निरंतर सुश्रुषा करते हैं । नंदिनी उनकी परीक्षा लेती है जिसमें वे ह्रदय से सेवाभाव रखने के कारण सफल होते हैं । नंदिनी प्रसन्न हो उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देती है और अपना क्षीरपान करने को कहती है । राजा और रानी वरदान प्राप्त कर गुरू आज्ञा ले राजधानी लौटते हैं ।

सर्ग 3 – उन्हें कालांतर में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है । जिसका नामकरण रघु किया जाता है । रघु बड़ा होता है । अश्वमेघ यज्ञ किया जाता है जिसमें युवा रघु अपना पराक्रम प्रदर्शित करते हैं । राजा दिलीप रघु को राज्य प्रदान कर पत्नी सहित वन गमन करते हैं एवं वानप्रस्थ धारण करते हैं ।

सर्ग 4 – पराक्रमी राजा रघु दिग्विजय करते हैं ।

सर्ग 5 – इस सर्ग में राजा रघु की अद्वितीय दानशीलता का वर्णन है । राजा रघु अपना सर्वस्व दान में न्यौछावार कर चुके होते हैं , तब ब्रह्मचारी कौत्स अपने गुरू को दक्षिणा प्रदान करने हेतु राजा से धनराशि की याचना करने उनके समीप पहुंचते हैं । रघु उसे चौदह कोटि स्वर्ण मुद्राएँ देने हेतु कुबेर पर आक्रमण की तैयारी करते हैं किन्तु कुबेर स्वयं ही स्वर्ण वर्षा कर दान देने हेतु राजा रघु को पर्याप्त धन दे देते हैं । कौत्स को राजा सारा स्वर्ण दे देना चाहते हैं किन्तु कौत्स केवल अपनी आवश्यकता का ही धन लेकर रघु को यशस्वी एवं उनके समान ही सुयोग्य पुत्र पाने का आशीष देकर के बिदा हो जाते हैं । कालांतर में रघु को अज के रूप में सुयोग्य पुत्र प्राप्त होता है ।

सर्ग 6 – इस सर्ग में अज युवावस्था को प्राप्त करते हैं और विदर्भ- राज की पुत्री इंदुमती के स्वयंवर में आमंत्रित किये जाते हैं । इंदुमती उन्हें अपना वर चुनती है । विवाह हर्षपूर्वक सम्पन्न होता है ।

सर्ग 7 – इंदुमती स्वयंवर में विफल राजागण विवाहोपरान्त विदाई में लौटते हुए अज – इंदुमती के ऊपर अचानक आक्रमण कर देते हैं । जिससे कि भीषण युद्ध होता है । अज की विजय होती है । राजा अज इंदुमती सहित राजधानी में प्रवेश करते हैं ।

सर्ग 8 – राजा अज के पुत्र दशरथ का जन्म होता है । रानी इंदुमती का पुष्पमाल के आघात से आकस्मिक निधन हो जाता है ।

सर्ग 9 से 15 – दशरथ के पुत्र राम और उनके तीन भाईयों का जन्म होता है । इन सर्गों में संक्षेप में समस्त रामायण की ही कथा कही गई है ।

सर्ग 16 – राम के पुत्र कुश का जन्म व तत्पश्चात् उनका नागकन्या कुमुद्वती से विावह व जलविहार का वर्णन है ।

सर्ग 17 – इस सर्ग में कुश के पुत्र अतिथि के जन्म और उनकी जीवन गाथा का सुन्दर वर्णन है ।

सर्ग 18 – राजा अतिथि के बाद की पीढ़ियों का वर्णन है । इसमें कुल 21 राजाओं की जीवन गाथा सोपानों में चित्रित हैं ।

सर्ग 19 – इसमें राजा सुदर्शन के पुत्र अग्निवर्ण की विलासिता वर्णित हैं व उनकी दुःखद मृत्यु का हृदय विदारक चित्रण है । राजा अग्निवर्ण  के वर्णन के साथ ही ” रघुवंश ” महाकाव्य की समाप्ति है ।

महाकवि कालिदास , महाकाव्य रघुवंश के माध्यम से राजा रघु की वंशावली का वर्णन करते हैं एवं राजाओं हेतु प्रजावत्सलता , दानशीलता , शूरवीरता और प्रजा के सदाचार व सद्भावना के कल्याणकारी संदेश देते हैं ।  आचार्यों ने  रघुवंश में वर्णित विषय विविधता को ही ध्यान में रखकर महाकाव्य के लक्षणों का निर्धारण स्थापित किया है एवं महाकाव्य की परिभाषा व्यक्त की है । महाकवि कालिदास की लेखनी से लगभग 1600 वर्षों से अधिक समय पूर्व जो काव्य निःसृत हुआ वह आज भी उतना ही रसमय एवं नवीनता लिये हुए है ।

शताब्दियों से संपूर्ण विश्व के विद्वानों ने महाकाव्य रघुवंश की भूरि – भूरि प्रशंसा की है । अनेकों विद्वानों ने काजलयी कृति रघुवंश के रसास्वादन के लिए संस्कृत भाषा का अध्ययन किया । महाकवि कालिदास अद्वितीय थे और आज भी अद्वितीय ही हैं ।

… विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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