॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #3 (51-55) ॥ ☆

 

औं दूसरे से सुरेन्द्र – रथ – ध्वजा को जो थी वज्रचिन्हित को भी काट डाला

तब देवलक्ष्मी के काटे गये केश सा कुपित इंद्र खुद को लड़ने सम्हाला ॥ 56॥

 

दोनों ही अपनी विजय कामना से लगे करने संग्राम भारी भयावह

इंद्र और रघु के उड़नशील सर्पो से बाणों से भयभीत साथी थे रहरह ॥ 57॥

 

अपनी सुयोजित संबल बाण वर्षा से भी इन्द्र रघु को न कर पाये फीका

जैसे स्वतः से ही अद्भुत विद्युत को बादल कभी भी न कर पाते फीका ॥ 58॥

 

तब रघु ने अपने एक अर्द्धचन्द्र श्शर से, देवेन्द्र के धनु की काटी प्रत्यंचा

जो कपिल चंदन लगे हाथ से मथे जाते उदधि की सी करता गरजना ॥ 59॥

 

हो इंद्र क्रोधित अलग फेंक धनु को उठा वज्र पर्वत के पर जिसने छांटे –

बिखरती रही थी प्रभा जिससे भारी बड़े वेग से चलाया रघु के आगे ॥ 60॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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