॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (21-25) ॥ ☆
लख उदित नभ में अगस्त औं स्वच्छ जल हर ठाँव में
रघु विजय यात्रा की श्शंका उठी सबके भाव में ॥ 21॥
रघु के से विक्रम का करते खेल में ज्यों अनुकरण
मत्त ऊँचे वृषभ धरते सरित तट का उत्खनन ॥ 22॥
हो के आहत हाथियों ने सपृपर्ण की गंध से
छोड़ा मदजल वैसा ही कर होड़ अपने अंग से ॥ 23॥
नदियो को उथला बनाती मार्गो को कदर्म रहित
शरद आई शक्ति को दे प्रेरणा यात्राओं हित ॥ 24॥
वाजनीरा जन – हुताग्नि उठ मुड़ी दक्षिण दिशा
विजय का संकेत मानो स्वतः ही उसको दिया ॥ 25॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈