॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (61-65) ॥ ☆

 

यवनीयों के मुख कमल हुये न रघु को सह्य

असमय मेघों का रहा रवि ज्यों सदा असह्य ॥ 61॥

 

अध्वारोही सेन से सज्जित पश्चिम देश

लड़े धनुष्टंकार से गुंज्जित था परिवेश ॥ 62॥

 

मधुमक्खी से घिरे से मधुछत्ते की भांति

रघु – भालों से कट गिरी श्मश्रु मुण्डों की पाँत ॥ 63॥

 

बचे शत्रु शिर कवच रख आये शरण रघु पास

विनय रूप प्रतिकार में था जिनका विश्वास ॥ 64॥

 

द्राक्षामण्डप के तले बैठे सुभर महान

सुरापान करने लगे करने दूर थकान ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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