॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (66-70) ॥ ☆
पारस – जय उपरांत रघु रवि की विजय समान
बढ़े उदीची ओर रख प्रखर किरण से बाण ॥ 66॥
सिन्धु नदी तट अश्वों ने लोट किया आराम
हिला ग्रीव झटकी लगी केशन केश तमाम ॥ 67॥
रघु के प्रबल विरोध वश सुन पतियों के हाल
हूण नारियों के हुये आँसू से तर गाल ॥ 68॥
बँधे गजों की रज्जु से मर्दित खिन्न समान
तरू अखरोटों सँग हुये काश्मीर नृप म्लान ॥ 69॥
झुक काम्बोज नरेश ने भेंट किये उपहार
रघु को सुंदर अश्व, धन, भूषण विविध प्रकार ॥ 70॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈