॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (1-6) ॥ ☆

लखा वहाँ अज ने आसनों पर सजे विराजे नृपति वरों को

जो मंच शोभी स्वरूप गुण से लुभा रहे थे अमरगणों को ॥ 1 ॥

 

परन्तु उसको विलोक नृपगण निराश से हो उदास मन से

लगे समझने कि इंदु अज की है, प्रीति रति की यथ मदन से ॥ 2 ॥

 

विदर्भपति के दिखाये पथ से कुमार वह पहुँचा मंच पै जो

लगा कि ज्यो कोई सिंहशावक, शिलाओं से गिरिशिखर चढ़ा हो ॥ 3 ॥

 

रँगे गलीचे से अति सुसज्जित, जड़ाऊ आसन पै बैठ के वह

हुआ सुशोभित मयूर की पीठ पै जैसे बैठे हों कार्तिकेय ॥ 4 ॥

 

यथा सघन घन के मध्य दामिनि की कौंध होती है दीप्तिवाली

तथा थी अज की समृद्ध शोभा वहाँ दमकती हुई निराली ॥ 5 ॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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