हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं? ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
☆ नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं? ☆
क्यों अक्सर कूड़ों के बदबूदार ढ़ेर में,
उजली सुबह काले कर्म छिपें होते हैं।
कुत्तों से नुच नुच कर बहशीयाने ढ़ेर में,
नवजात शिशुओं के शव पड़े होते हैं।।
महाभारत के कर्ण आज भी पैदा होते हैं,
जो अवैध नहीं, मां बाप अवैध होते हैं।
निष्पाप होकर भी वे कूड़े में पड़े होते हैं,
क्योंकि अवैध ऐयासी की उपज होते हैं।।
कर्ण तो कुंवारी कुंती की एक गलती थी,
आज के कर्ण तो वासना का फ़ल होते हैं।
कुंती के दिल की कभी नहीं चलती थी,
तभी तो लख्ते जिगर कूड़े में पड़े होते हैं।।
बिन विवाह संग रह कर सभी वैध होते हैं,
अवैध भी महाभारत से वैध हुआ करतें हैं।
बेटियों से भी तो सहारे हमें मिला करते हैं,
फिर क्यों शव उनके ही नुचे पड़े मिलते हैं।।
सास ससुर पति हेतु क्यों ममता शर्म सार है ,
पुत्र पैदा करने हेतु नारी शिशु बलि होते हैं।
सृष्टा हैं बृह्मा हैं नियंता हैं और जीवन सार हैं,
फिर भी नारी शिशु शलभ सम दहन होते हैं।।
आज़ कुंती अबला नहीं निज पैरों पे खड़ी है,
फिर भी दिल के टुकड़े उससे जुदा होते हैं।
क्यों उसकी इज़्ज़त लहूलुहान कूड़े में पड़ी है,
नारी मुक्ति के मायने क्या पोशिदा होते हैं।।
© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव