हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ हमको ऐसा देश, चाहिये ☆ – डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
(डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी की यह रचना सामयिक नहीं कालजयी, चाहिए। हमको ऐसा देश, चाहिए … । अतिसुन्दर रचना डॉ विजय जी की लेखनी को नमन।)
☆ हमको ऐसा देश, चाहिए ☆
नैनों में हो, नेह समाया
सद्गुण हो, सबका आभूषण।
निश्छलता, अपनाने वाले,
कर्मठ मनुज, विशेष, चाहिये।।
हमको ऐसा देश, चाहिये …
स्वाभिमान हर, माथे दमके,
राष्ट्रप्रेम, हो सबके अंतस।
धर्म-कर्म, की अलख जगाने,
गीता के उपदेश, चाहिये।।
हमको ऐसा देश, चाहिये …
आतंकी, खल, दुर्धर्षों का,
कर डालें, अब पूर्ण सफाया।
सीमा पर, मर-मिटने वाले,
भावों का उन्मेष, चाहिये।।
हमको ऐसा देश, चाहिये …
स्थिरता हो, अनुशासन हो,
देशप्रगति, की रहे लालसा।
औद्योगिक, तकनीकि क्रांति का,
वृहद, नवल, परिवेश, चाहिये।।
हमको ऐसा देश, चाहिये …
प्रतिभाओं के, सदुपयोग से,
हो भविष्य, युवकों का उज्ज्वल।
रोजगार, देने संकल्पित,
शिक्षा में संदेश, चाहिये।।
हमको ऐसा देश, चाहिये …
भगवद्गीता, वेद-ऋचायें,
भारत की, बहुमूल्य विरासत।
संस्कार, आदर्श, ज्ञान का,
बहुआयामी वेश, चाहिये।।
हमको ऐसा देश चाहिये …
भूल परस्पर, भेदभाव सब,
कहलायें, हम भारतवासी।
भारत को, उत्कृष्ट बनाने,
होने बड़े निवेश, चाहिये।।
हमको ऐसा देश, चाहिये …
© डॉ विजय तिवारी “किसलय”, जबलपुर