॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (71-75) ॥ ☆

 

इश्वाकु कुल में हुये नृपों में कोई ककुत्स्थ नामक ख्यात नृप थे

‘काकुत्स्थ’ से उसी गौरव की अभिव्यक्ति सब कोशलेन्द्रों की होती तब से ॥ 71॥

 

ककुत्स्थ ने इंद्र – वृषभ पै चढ़ देवासुर समर में शिवरूप धारे

अरिपत्नियों को बनाते विधवा समर में अगणित असुर थे मारे ॥ 72॥

 

ऐरावत स्वामी इंद्र के साथ बराबरी का कर प्राप्त आसन

अपने पराक्रम के बल था पाया सुरेन्द्र का भी आधा सिंहासन ॥ 73॥

 

करने उसी वंश की कीर्ति उज्जवल दिलीप उसमें हुये थे राजा

जिन्होंने एक कम कर शत महायज्ञ रूकें न शक्र कोई कर तकाजा ॥ 74॥

 

जिसके कि शासन में मदरता नारियाँ केलि के मध्य ही सो गई जो

के वस्त्र को वायु भी छू न सकता, किस हाथ में शक्ति थी छू सके जो॥ 75॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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