॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (1-5) ॥ ☆
अनुरूप वर प्राप्त तब इंदुमति को जो देवसेना सी थी स्कंद को प्राप्त
ले साथ अपनी बहिन, भोज नृप ने किया यत्न नगरी में जाने का तत्काल ॥ 1॥
सारे नृपति भी प्रभाहीन तारों से रवि के उदय पर दुखी पराजित से
निज रूप-गुण-वेश को कोसते से, गये शिविर में आये थे जो जहाँ से ॥ 2॥
शचि की कृपा से स्वयंवर में सब नृप रहे श्शांत यद्यपि था संकट का डर भी
काकृत्स्थ अज के स्पर्धी अनेकों नृपति मन मसोसे रहे द्वेष कर भी ॥ 3॥
वर वधु सँग पहुँचा उस राजपथ पर जहाँ पुष्पवर्षा से शोभित सुपथ था
जहाँ तोरणें इन्द्रधनु सम सजी थीं, जहाँ ध्वजा छाया से आतय विरत था॥ 4॥
जहाँ भवनों के स्वर्ण छज्जों से महिलायें थी झलक पाने को आतुर उमगती
तज काम सारे अधूरें, घरों के, वर-वधू की रूप श्शोभा निरखती॥ 5॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈