हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ तुम्हारे चिर चले जाने का मातम मैं मनाऊं ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

☆ तुम्हारे चिर चले जाने का मातम मैं मनाऊं 

 

तुम्हें अपना न बना पाने का दुख मैं मनाऊं,

या किसी अन्य संग रहने का सुख मनाऊं।

तुम्हारे चिर चले जाने का मातम मैं मनाऊं,

या तुम्हारे उर में बसे रहने का सुख मनाऊं।।

तुम्हारे – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – मनाऊं।

 

तुम्हारे संग बिताई मैं स्मृतियों जीवंत कर लूँ,

या तुम्हारे बिन बिताए पलों को भूल जाऊं।

तुम्हारे रूप का पान मैं जीवन पर्यंत कर लूँ,

या तुम्हारे नेह सुरा की विस्मृति में डूब जाऊँ।।

तुम्हारे – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – मनाऊं।

 

तुम्हारे मृगनयनों की वारूणी में मैं डूब जाऊं,

या तुम्हारी मोह माया से बाहर निकल आऊं।

मैं तुम्हारे प्रणय जाल में फंस तिलमिला जाऊं,

या कनखियों से देखती तेरी आंखें भूल जाऊं।।

तुम्हारे – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – मनाऊं।

 

तेरे सुरमई आगोश की भंवर यादों में डूब जांऊ,

या सदा के लिए भूलने का मैं एहतराम कर लूं।

तू ही बता भूल खुद को तेरे वजूद में डूब जाऊं,

या फिर तुझे भूल मैं कोई और इंतजाम कर लूं।।

तुम्हारे – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – मनाऊं।

 

डा0.प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

 

 

© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव