॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (21-25) ॥ ☆
कुश मेखला,चर्म मृग श्रृंग धारी संस्कारी नृप संयत जिसकी वाणी –
में स्वयं शिव ने दी दीप्ति अपनी हो जैसे उसमें प्रभा समानी ॥ 21॥
कर तीर्थस्नान, बन के जितेन्द्रिय, देवों का सा मान दशरथ ने पाया
नमुचि विरोधी सुरेन्द्र को बस प्रवति में जिसने था सिर झुकाया ॥ 22॥
पराक्रमी दशरथ धनुर्धर ने जो युद्ध में इन्द्र का अग्रगामी
आकाश में उड़ती धूल को रक्त से शांत करने का बना नामी ॥ 23॥
कुबेर वरूणेन्’द्र यम सम पराक्रमी दशरथ नृपति की ज्यों अर्चना में
बंसत ऋतुराज भी हो उपस्थित निरत हुआ पुष्प की सर्जना में ॥ 24॥
कुबेर रक्षित दिशा को जाने अरूण ने अश्वों को जब घुमाया
तो सूर्य ने कर विमल दिशायें मलय से हट शीत को कुछ घटाया ॥ 25॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈