॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (16-20) ॥ ☆
जग की रचना, भरण औं है कर्त्ता – संहार
त्रिविध देन हम सबों का नमन तुम्हें कई बार ॥ 16॥
ज्यों नभ का जल एक है, स्थान स्थान पै भिन्न
त्यों सत – रज – तम गुण सहित है कई आप अभिन्न ॥ 17॥
सतत सर्वपरिव्याप्त प्रभु अक्षर, अर्जित, असीम
सूक्ष्म रूप इस विश्व के कारण व्यक्त ससीम ॥ 18॥
हे प्रभु होते हृदय में भी रहते हो दूर
अजर, अनघ, तप, दयामय, ममता से भरपूर ॥ 19॥
हे प्रभु तुम सर्वज्ञ हो, तुम सबके आधार
स्वयंभूत सर्वेश तुम, सबमें सभी प्रहार ॥ 20॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈