॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (26-30) ॥ ☆

 

कुछ भी नहीं है प्राप्य जो तुम्हें नहीं है प्राप्त

लोक अनुग्रह ही तब जन्म कर्म का आप्त ॥ 31॥

 

कर महिमा गुणगान तब उपरत जो है वाक्

वह श्रम से है नहीं, तब गुणों की सीमा नाप ॥ 32॥

 

इस प्रकार उन देवों ने जिनके इंद्रिय ज्ञान

अधोमुखी हुये विष्णु को किया प्रसन्न समान ॥ 33॥

 

देवों ने पूंछी कुशल, हुये मुदित भगवान

राक्षस रूपी उदिध का, मन्थन गहन महान ॥ 34॥

 

तब समुद्र तट गुहासे ध्वनित उदधि उद्गार

सागर ध्वनि कर पराजित बोले श्री भगवान ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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