॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (56-60) ॥ ☆
नृप निज पति के हृदय की इच्छा को धर ध्यान
आधे आधे भाग निज उसको दिये समान ॥ 56॥
सृमित्रा को दोनों थीं प्रिय बिलकुल उसी प्रकार
भ्रमरी को गज गाल की ज्यों दोनो मदधार ॥ 57॥
तीनो ने प्रभु कृपा से देने को सन्तान
गर्भ धरा ज्यों अमृता करती वृष्टि प्रदान ॥ 58॥
साथ गर्भ धर तीनों ने की वह कांति प्रदान
धान्य भरी ज्यों बालियाँ पीली देती धान ॥ 59॥
सपनों में उनने लखा बहुथा बारम्बार
आयुध धारी विष्णु से रक्षित सभी प्रकार ॥ 60॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈