॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (71-75) ॥ ☆

ज्यों सम्यक संचित विद्या देती विनय औ ज्ञान

त्यों ही लक्ष्मण – शत्रुध्न थे सुमित्रा के प्राण ॥ 71॥

 

हो निर्दोष जगत हुआ सुखद स्वर्ग सा आप

विष्णु के पीछे आये सब स्वर्गिक क्रिया कलाप ॥ 72॥

 

चतुर्रूप में विष्णु ने लिया जब यों अवतार

रावण – त्रस्त दिशाओं में हुआ हर्ष – संचार ॥ 73॥

 

रावण पीडि़त अग्नि रवि हो निर्धूम प्रसन्न

लगा कि दुख से मुक्त हो हुये सुख से सम्पन्न ॥ 74॥

 

राक्षस रावण श्री हुई राम जन्म से खिन्न

अश्रुबिन्दु से मणि गिरे हो किरीट से भिन्न ॥ 75॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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