॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (21-25) ॥ ☆
राम पराक्रम से हुये कौशिक परम प्रसन्न।
मंत्र युक्त दे अस्त्र नव, किया और सम्पन्न।।21अ।।
सूर्यक्रान्त मणि जिस तरह रवि से ज्वालन ज्योति।
पाता, पाया राम ने त्यों मुनि से नव योग।।21ब।।
फिर वामन आश्रम का सुन मुनिवर से आख्यान।
राम हुये उत्सुक वहाँ करने को प्रस्थान।।22।।
पहुँचे मुनि संग तपोवन जहाँ शिष्य समुदाय।
पूजन सामग्री सहित, तत्पर था साभिप्राय।।23अ।।
जहाँ वृक्ष पल्लवपुट-अंजलि मय मधु बैन।
और हरिण, दर्शन के हित लिये थे उत्सुक नैन।।23ब।।
राम-लखन ने वहाँ मुनि मख मे उसी प्रकार।
रक्षा की ज्यों सूर्य-शशि हरते हैं अंधियार।।24।।
रक्त बिन्दु से अपावन देख वेदि संभाग।
विचलित से मन में हुये यज्ञ-कर्म सब त्याग।।25।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈