हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ पिता का मान करें उन पर अभिमान करें ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

(डॉ. प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी की पितृ दिवस पर प्रेषित कविता कल अपरिहार्य कारणों से प्रकाशित न कर सका और अपने स्वर्गीय पिता की स्मृति में  मैं अपनी कविता प्रकाशित करने का साहस न कर सका जिसे आज प्रकाशित कर रहा हूँ।  फिर माता एवं पिता की  स्मृतियाँ तो सदैव हृदय में बसी रहती हैं।)

 

☆ पिता का मान करें उन पर अभिमान करें

 

जो पत्नी को देकर निज अर्धांश,

संतानों की रचना किया करता है।

जो सृजन में भार्या को दे प्रेमांश,

संतानों को जन्म दिया करता है।।

 

वो पत्नी के स्वास्थ्य का ध्यान रख,

उत्तम खान टीकाकरण कराता है।

शिशु जन्म में जो तनाव सह कर,

मधु वार्ता से प्रसव पीड़ा हरता है।।

 

जो जन्मे शिशु की देखभाल करता,

शिशु के सब टीकाकरण कराता है।

शिशु का स्वास्थ्य सुनिश्चित करता,

पर्याप्त पोषण का प्रबंध कराता है।।

 

जो बच्चे में देखे नित अपना बचपन,

बच्चों में सुंदर सपने बुनना सिखाता।

खिलौने लाता कभी खिलौना बनता,

उत्साह भर उनके व्यक्तित्व बनाता।।

 

अभाव न हो उसके बच्चों को कभी,

इसलिए कड़ा परिश्रम वो करता है।

उत्तम शिक्षा पाएं उसके बच्चे सभी,

अर्पित निज सारा जीवन करता है।।

 

जुंआ, नशा, अपराध से वह दूर रह,

अपने बच्चों को सुंदर संस्कार देता।

परिवार में वह घरेलू हिंसा से दूर रह,

नारी सम्मान बढ़ाने का जिम्मा लेता।।

 

बच्चों का जीवन खुशियों से भरता,

जिम्मेदार नागरिक वह उन्हें बनाता।

बच्चे न भटकें कड़ी दृष्टि वह रखता,

भटके बच्चों को सही राह पर लाता।।

 

पिता है तो बच्चे सुख की नींद सोते,

निश्चिंत रहते सभी सारे सुख मिलते।

अच्छी शिक्षा, खान पान, वस्त्र पाते,

वो हो तो बच्चों को दुख नहीं मिलते।।

 

अंदर से कोमल पर कठोर वो बाहर से,

अनुशासन से बच्चों को उत्तम बनाता।

प्यार करता पर निष्ठुर लगता बाहर से,

राष्ट्र प्रेम पढ़ा देश भक्त उन्हें बनाता।।

 

पिता जिन्हें मिलते खुश किस्मत होते हैं,

साए में पिता के दुर्दिन भी सुदिन होते हैं।

पितृहीन जो होते वो बदकिस्मत होते हैं,

पिता न हों तो सुदिन भी दुर्दिन होते हैं।।

 

पिता का मान करें उन पर अभिमान करें,

उन्होंने कल किया आपके लिए कुर्बान,

उम्र कोई हो, नहीं उनका अपमान करें,

उनके लिए अपना आज कुर्बान करें।।

 

डा0.प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव