॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (36-40) ॥ ☆
सर्गः-12
चंद्रोदय करता है ज्यों सागर को विक्षुब्ध।
किया सिया के हास ने त्यों ही उसको क्षुब्ध।।36।।
कहा राक्षसी ने तुरत यह मेरा अपमान।
भोगोगी परिणाम खुद इतना निश्चित जान।।37।।
सीता को भयभीत कर नाम के ही अनुरूप।
शूर्पनखा ने, सूपनख सा रक्खा निज रूप।।38।।
पहले तो मधुभाषिणी फिर लख ऐसा रूप।
लक्ष्मण ने जाना उसे मायाविनी विरूप।।39।।
इससे क्रोधित हो अधिक नाक-कान दिये काट।
घुसी कुटी में राम की, करने बाराबाट।।40।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈