हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ अब क्यूँ ? ☆ – डॉ ऋतु अग्रवाल
डॉ ऋतु अग्रवाल
☆ अब क्यूँ ? ☆
(डॉ ऋतु अग्रवाल जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप भीम राव आंबेडकर कॉलेज, दिल्ली में प्राध्यापक हैं । सोशल मीडिया से परिपूर्ण वर्तमान एवं विगत जीवन के एहसास की अद्भुत अभिव्यक्ति स्वरूप यह कविता “अब क्यूँ?” हमें विचार करने के लिए प्रेरित करती है।)
अब क्यूँ
हमारे शर्म से
चेहरे गुलाब नहीं होते.
अब क्यूँ
हमारे मिजाज मस्त मौला नहीं होते
इजहार किया करते थे
दिल की बातों का
अब क्यूँ
हमारे मन खुली किताब नहीं होते
कहते हैं तब, बिना बोले
मन की बात समझते
आलिंगन करते ही हालात समझ लेते
ना होता था
व्हाट्सएप, फेसबुक
ख़त होता था
खुली किताब
मिल जाता था दिलों का हिसाब
हम कहां थे कहां आ गए
नहीं पूछता बेटा बाप से
उलझनों का समाधान
नहीं पूछती बेटी मां से
घर के सलीको का निदान
अब कहां गई
गुरु के चरणों में बैठकर
ज्ञान की बातें
परियों की वह कहानी
न रही ऐसी जुबानी
अपनों की वह यादें
न रहे वो दोस्त,न रही वो दोस्ती
ऐ मेरी जिंदगी
हम सब
व्यावहारिक हो गए
मशीनी दुनिया में इंसानियत खो गए.
© डॉ.ऋतु अग्रवाल