॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (1 – 5) ॥ ☆

सर्गः-13

पुष्पक से करते हुये वृहद गगन को पार।

पत्नी से हरि ने कहा सहसा उदधि निहार।।1।।

 

सीते देखो मलय तक सेतु भिन्न जलराशि।

फेनिल सागर ज्यों शरद तारकमय आकाश।।2।।

 

यज्ञ-अश्व को सगर के कपिल मुनि पाताल।

ले गये पाने फिर जिसे कटी थी धरा विशाल।।3।।

 

सागर से ही रवि-किरण पाती जल-आधान।

बड़वानल, शशि, कीमती रत्नों की यह खान।।4।।

 

दशों दिशा में व्याप्त जो विस्तृत विष्णु समान।

रूप और आकार का जिसके पूर्ण न ज्ञान।।5।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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