॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (6 – 10) ॥ ☆
सर्गः-13
युग समाप्ति पर विष्णु जी कर जग का संहार।
सोते इसमें होता तब ब्रह्मा का अवतार।।6।।
शत्रु त्रस्त ज्यों भीत नृप, महाबली नृप पास।
जाते वैसे, विवश नगर कई का यह आवास।।7।।
जब वछाह बन विष्णु ने किया धरा-उद्धार।
तब पृथ्वी-घूंघट बना इस का जल विस्तार।।8।।
अधर दान में पान हित कुशल नदी ज्यों नारि।
को चुंबन हित तरंगित यह उलटा व्यवहार।।9।।
पी जीवों संग सरित-जल जलचर विविध प्रकार।
कर मुखमीलित छोड़ते शीशछिद्र से धार।।10।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈