॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (11 – 15) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
रथ पर धारे छत्र थे भरत सहित सम्मान।
लखन शत्रुहन चँवर ले शोभित थे द्युतिमान।।11अ।।
राजाराम विराजते थे सब सहित अनूप।
साम-दाम-दंड-भेद ज्यों चार भाई के रूप।।11ब।।
कालागुरू की धूप भी वायु में धूम्र समान।
नगरी की कबरी खुली सी देती पहचान।।12।।
सज्जा सज्जित सिया को निरख डोली आसीन।
खिड़की से ललनाओं ने किया नमन मनलीन।।13।।
अनुरूपा आशीष के अंगराग से दीप्त।
लगी, हों ज्यों पावन सिया पुनः परीक्षा-दीप्त।।14।।
सबको दे आवास गृह सब सुविधा-सम्पन्न।
याद-शेष, पितुगृह गये राम अश्रु आपन्न।।15।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈