॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (41 – 45) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
इससे राक्षस हनन का व्यर्थ न मेरा प्रयास।
वह तो सीता हरण का बदला था सायास।।41अ।।
पग से दब क्या किसी के भी कोई भी सर्प।
रक्तपान की कामना से डसता सामर्ष?।।41ब।।
निंदा बाणों से मेरे अगर बचाना प्राण।
तो कृपालु हो सब करो मम निश्चय का मान।।42।।
ऐसा कहते राम से कर पत्नी हित क्रोध।
दे न सका कोई सहमति, न ही कर सका विरोध।।43।।
तब उस अग्रज राम ने दे लक्ष्मण पर जोर।
अलग दिया आदेश यों जो था परम कठोर।।44।।
‘‘सीता दोहद को है प्रिय वन-दर्शन की चाह।
तो रथ इनको वाल्मीक आश्रम तक ले जाय’’।।45।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈