॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (51 – 55) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

रामाज्ञा से सिया का करते वन में त्याग।

रोका गंगा ने उसे बढ़ा लहर सा हाथ।।51।।

 

सारथि रोके अश्वरथ से गंगा के तीर।

उतर, उतारी जानकी, बढ़ी हृदय में पीर।।52अ।।

 

सत्यसंघ पर लखन ने की यों गंगा पार।

जैसे भारी बोझ कोई सिर से दिया उतार।।52ब।।

 

फिर कर संयत वाणि को रोक अश्रु-आवेग।

सुनादी वह राजाज्ञा, जैसे कड़के मेघ।।53अ।।

 

वज्र धात से थे वचन उपलवृष्टि से घोर।

गर्भवती के हृदय को जो गये अति झकझोर।।53ब।।

 

ज्यों आँधी आहत लता तज प्रसून, हो ध्वस्त।

बिछ जाती है भूमि पर त्यों सीता हुई त्रस्त।।54अ।।

 

अलंकार सब तज, दुखित, माँ धरती को पुकार।

जननी पृथ्वी पर विवश खाके गिरी पछाड़।।54ब।।

 

रघुकुल-जनमे इस तरह मर्यादापति राम।

क्यों यों सहसा करेंगे बिन समझे परिणाम।।55अ।।

 

माँ धरती के हृदय में हुआ गहन संदेह।

इससे उससे न दिया उसे गेह और स्नेह।।55ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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