॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (81 – 87) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
संध्यावंदन बाद सिया ने किया कुटी-निवास।
शैया थी मृगचर्म की, इंगुदि दीप प्रकाश।।81।।
कर नियमित स्नान, विधि, पूज अतिथि सत्कार।
कंद-मूल-फल खा, किया जीवन का उपचार।।82।।
लक्ष्मण ने कहा राम से सिया कथा विस्तार।
शायद करे वह राम के मन पै कठिन प्रहार।।83।।
हुआ बात सुन राम के मन पै एक आघात।
पौष-चंद्र सम कर चले नयन अश्रु बरसात।।84अ।।
क्योंकि लोक-निंदा से था सीता का परित्याग।
मन में निर्मल प्रेम था, धधक रही थी आग।।84ब।।
धर्म-धुरंधर राम ने किया समन्वित राज।
शोक संयमित रख किया सात्विक हर एक काज।।85।।
राम थे जिनने किया निज प्रिय पत्नी का त्याग।
राज-लक्ष्मी का रहा नित उन पर अति अनुराग।।86।।
त्याग सीता को, न सोचा राम ने फिर ब्याह को
स्वर्ण प्रतिमा गई बनाई धर्म के निर्वाह को।
सुन के यह वृत्तांत सीता ने भी दुख सब कुछ सहा
एक पत्नी व्रत की भी होती है एक महिमा महा।।87।।
चौदहवां सर्ग समाप्त
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈