हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ गुरु वन्दना ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

गुरु पुर्णिमा विशेष 

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आज प्रस्तुत है आदरणीय श्री संतोष नेमा जी की  गुरु पुर्णिमा पर विशेष रचना “गुरु वंदना”  “गुरु वन्दना”)

 

गुरु वन्दना☆ 

बिन गुरु कृपा न हरि मिलें,बिनु सत्संग न विवेक

हरि सम्मुख जो कर सके,गुरू वही हैं नेक।

 

गुरु की है महिमा अंनत ,है ऊंचा गुरु मुकाम

पहले सुमरें गुरू को,फिर सुमिरें श्री राम।

 

गुरु को हिय में राखिये, गुरु चरणो में प्रेम

दिग्दर्शक नहीं गुरु सा,वही सिखाते नेम।

 

भय भ्रांति हरते गुरू,दिखा सत्य की राह

थामी जिसने गुरु शरण,मिलती कृपा अथाह।

 

गुरु कृपा से काम बनें,गुरू का पद महान

सेवा से ही सुखद फल,जानत सकल जहान।

 

गुरु का वंदन नित करें,गुरु का रखें ध्यान

प्रेरक न कोई गुरु सा,गुरु सृष्टि में महान।

 

गुरु में गुरुता वही गुरु,गुरु में न हो ग़ुरूर

ज्ञान सिखाता गुरु हमें,गुरु से रहें न दूर।

 

नीर क्षीर करते वही,करें शिष्य उपचार

तम हरके रोशन करें,सिखाते सदाचार।

 

गुरु भक्ति हम सदा करें,हर दिन हो गुरुवार

आता जो भी गुरु शरण,उसका हो उद्धार।

 

गुरु सागर हैं ज्ञान के,गुरू गुणों की खान

अंदर बाहर एक रहें,वही गुरु हैं महान।

 

गुरु पारस सम जानिये, स्वर्ण करें वो लोह

पूज्यनीय हैं गुरु सदा,करें न गुरु से द्रोह।

 

भय वश बोलें जबहिं गुरु,होता नहीं कल्याण

पद,प्रतिष्ठा,प्रभाव से,गुरु का घटता मान।

 

जिस घर में होता नहीं,सदगुरु का सत्कार

उस घर खुशियां ना रहें,रहता वो लाचार।

 

गुरु चरणों मे स्वर्ग है,गुरु ही चारों धाम

संकट में गुरु साधना,सदैव आती काम।

 

गुरु शरण “संतोष”सदा,गुरु से रखता प्रेम

चाहत गुरु आशीष की,है निश दिन नित नेम।

 

@ संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799