॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (6 – 10) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
जो बंद घर में आ, दर्पण में छाया सी, भासित हुई अचानक एक नारी।
श्रीराम के पुत्र कुश उससे विस्मित, शयन छोड़ उठ बैठे, बिन कोई तैयारी।।6।।
घुस आई तुम घर में धर रूप छाया सा, पर कोई दिखती नहीं योग माया।
योगी तो होते हैं निश्चिंत, निर्भय, मन में तुम्हारे है पर दुख समाया।।7।।
हिमाहत कुमुदिनी सी तुम दुखी दिखती, अचानक प्रविश बंद घर में यहाँ पर।
हो कौन तुम? किसकी पत्नी हो? मुझ पत्नी व्रतवान से चाहती क्या हो आकर?।।8।।
उसने कहा जिस अयोध्या से ले साथ गये राम बैकुण्ठ, मैं वहाँ की हूँ।
अयोध्या की हूँ मैं अधिष्ठात्री देवी, अनाथिन सी हो, अब जो यों दिख रही हूँ।।9।।
जो अधिक संपन्न अलकापुरी से थी, जब राम राजा थे, है वह अब यों सूनी।
तुम सम यशस्वी नृपति के भी होते, है आज निस्तेज वैभव-विहूनी।।10।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈