॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (16 – 20) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
बने भित्ति पर चित्र उन हाथियों के जिन्हें हथनियाँ कमल देती थी सर में।
समझ वास्तविक, क्रुद्ध सिंहों ने नख से किये चीर मस्तक दलित हर एक घर में।।16।।
बने दारूस्तम्भों पै रमणियों के रंगे चित्र सारे मलिन हो गये हैं।
जिन्हें भ्रम से चंदन समझ सर्प लिपटे, के केंचुल, कुचाभरण से बने गये हैं।।17।।
घरों की पुताई भी फीकी गई पड़, उपज आई अब घास उनकी छतों पर।
जहाँ चन्द्र किरणें चमकती थी शीतल, नहीं कोई सौन्दर्य दिखता वहाँ पर।।18।।
जिन डालियों को झुका प्रेम से, कभी चुनती थी हँसते हुए फूल नारी।
उन्हें वन-किरातों से कई वानरों ने दिया तोड़ औं उजाड़ी सारी क्यारी।।19।।
जिन गवाक्षों से निशादीप शोभा, औं दिन में छलकती थी आनन की आभा।
वहाँ मकड़ियों के घने जाले हैं अब, कहाँ दीप-किरणें? धुँआ या कुहासा।।20।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈