॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (46 – 50) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
शैवालिनी सीढ़ियों से उतर नीचे, गृहवापी जल कमर भर रह गया
खिलते जहाँ के कमल वहाँ अब मान, डण्ठल ही सूखा खड़ा रह गया है।।46।।
वन में खिले मल्लिका पुष्प की गंध से खिंच कली-कली के पास जाकर।
गुंजार करता भ्रमर, गणना सी करता है दीखता मधुर रस में लुभाकर।।47।।
खिसक कान से कामिनी के सिरस पुष्प भी अचानक नीचे गिरने न पाता।
क्योंकि पसीने से तर दंतक्षत पर कपोलों के ही वह चिपक सहज जाता।।48।।
धनी-मानी जन भर के चन्दन का जल फुहारों से छिड़ककर बिताते हैं रातें।
ठंडी शिला के पलंगों पै लेटे न जब, नींद आती हो करते हैं बातें।।49।।
जो काम अपने सखा वसंत के बिन, निबल और निस्तेज सा हो है जाता।
वही मल्लिका पुष्प गुंफित अलकगंध पा स्नात नारी की, बल है दिखाता।।50।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈