॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (56 – 60) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
सीढ़ी उतरती हुई कामनियों के केयूर, कंकण औं नूपुर की ध्वनि सुन।
जल में विहरते हुये हंस चौंके, सहसा हुये स्तब्ध सुन करके रूनझुन।।56।।
नौका पै बैठे हुए कुश ने देखा जलाषेक करती हर एक कामिनी को।
लख उनकी स्नान में रूचि बढ़ी, कहा कुश ने बुला एक चमरवाहिनी को।।57।।
दिखता है संध्या के मेघों सरीखा रंगा-विरंगा सा सरयू का पानी।
धुले अंगरागों से ऐसा गया हो, नहाती जहाँ मिलके सब साथ रानी।।58।।
नौका नयन से उठी हिलोरों से धुली सबके नेत्रों के काजल की काली।
बदले में सरयू के जल ने दी उनके नयनों को मदिरा के पीने की लाली।।59।।
नितंबों व स्तनों के भार से वे कामिनियाँ सही तैर सकती नहीं थी।
पर मोटे भुज बंधों मय भुजाओं से अथक पर विफल यत्न सबकर रही थी।।60।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈