॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (66 – 70) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
सब तरूणियाँ जल में आनन्द से परसार केलि में उछाले जल कणों से।
गीली लटाओं से कुंकुम मिले हुये, जल बिन्दु टपकाती थी लाल रंग के।।66।।
खुले बालों, रचना रहित गालों, बिन कर्णफूलों के भी बहुत लगती थी प्यारी।
बौछार से जल की, भीगी, असंयत थी पर छबि में मोहक अधिक थीं वे नारी।।67।।
तभी सजी नौका से आ कुश वहाँ, पहने उलझा हुआ हार, उतरा नदी में।
जैसे कि वन गज लपेटे कमल-नाल, उतरा हो सर में कही हथनियों में।।68।।
कुश को पा मुक्ता सी वे रमणियाँ यों लसी अधिक शोभित कि ज्यों रोशनी हो।
मुक्ता तो वैसे ही दिखता है सुन्दर,क्या कहना कि संग में अगर नीलमणि हो।।69।।
विशालाक्षि बालाओं ने प्रेम से कुश को जब कुंकमी रंग के जल से भिंगाया।
दिखे कुश कुछ ऐसे कि गेरू की जल-धार से रँगा सुन्दर हिमालय सुहाया।।70।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈