॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (31 – 35) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -17
देख ‘अतिथि’ के बदन पै सदा मधुर मुस्कान।
सब सेवक के लिये थे वे विश्वास महान।।31।।
इंद्र सदृश सम्पन्न नृप हो निज गज आरूढ़।
कल्प-द्रुम-ध्वज अयोध्या को दिया सुखों से पूर।।32।।
राजछत्र था अतिथि का सुखद विमल औ’ शांत।
कुश वियोग के ताप को किया था जिसने शांत।।33।।
ज्वाल धूम के बाद ही रश्मि, उदय के बाद।
होती पर चमके ‘अतिथि’ अग्नि-रवि को दे मात।।34।।
स्वच्छ शरद तारक विभा को ज्यां लखती रात।
त्योंहि अतिथि प्रति देखती, नगर-नारि सोउल्लास।।35।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈