॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (41 – 45) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -17
कुश ने सावन सा किया था जन-नद समृद्ध।
बरस भाद्र सा अतिथि ने और किया अति ऋद्ध।।41।।
दिये वचन पूरे किये, कभी न मानी हार।
किन्तु शत्रु को नष्ट कर किया सदा प्रतिकार।।42।।
आयु, रूप ऐश्वर्य हर है मद का आधार।
किन्तु सभी होते भी था नहिं उसे मदभार।।43।।
दिन दिन नित बढ़ता गया उस पर सबका प्यार।
इससे सुदृढ़ हुआ झट उसका जन-आधार।।44।।
बाह्य शत्रु तो व्यक्ति पर करते क्वचित प्रहार।
मन में षट् रिपुओं का ही उचित सदा संहार।।45।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈