॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (1 – 5) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -18
उस निषधराज की पुत्री से जो पुत्र अतिथि को हुआ प्राप्त।
गिरि निषध सा था वह बलशाली था नाम भी उसका ‘निषध’ आप्त।।1।।
जैसे वर्षा पा पके शालि से होता आनंदित जहान।
वैसे ही योग्य युवा सुत से नृप अतिथि हुए हर्षित महान।।2।।
चिरकाल भोग सब सुख जीवन के, राज्य-भार देकर सुत को
गये अतिथि स्वर्ग, पाने अपने शुभ कर्माजित स्वर्गिक सुख को।।3।।
उस कमल नेत्र, गंभीर चित्त, कुश-पौत्र निषध बलशाली ने।
आसिंधु-भूमि पर राज्य यिा एक छत्र जानु-भुजा वाले ने।।4।।
उपरांत निषध, पाई गद्दी राजा की तेजस्वी नल ने।
उस कमल कांति वाले ने अरिदल मथा, कमल को ज्यों गज है।।5।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈