हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ होशोहवास ☆ – सौ. सुजाता काळे
सौ. सुजाता काळे
(आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की एक भावप्रवण कविता ‘होशोहवास ’।)
☆ होशोहवास ☆
मेरे शहर में हज़ारों लोग हैं जो
दूसरों के गिरहबान में झाँक रहे हैं
अपने गिरहबान में झाँकने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
मेरे शहर में अनगिनत लोग हैं जो
दूसरों की गलतियों पर ताना देते हैं
अपनी गलतियों पर पछताने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
मेरे शहर में हजारों लोग हैं जो
दूसरों के दुखों पर खुश होते हैं
अपने सुख से परे देखने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
मेरे शहर में लाखों लोग हैं जो
दूसरों के हार पर खुश होते हैं
अपनी जीत के आगे देखने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
© सुजाता काले …
पंचगनी, महाराष्ट्र।
9975577684