॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (11 – 15) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -18
था पिता-पुत्र में नेह बड़ा दोनों थे परस्पर भाग्यवान।
फल पिता-पुत्र होते का पाया दोनों ने अनुपम समान।।11।।
थे पिता-पुत्र दोनों सुयोग्य गुणवान, यज्ञविधि जानकार।
इससे सुत को दे राज्य-भार, गये ‘क्षेम’ स्वर्ग निर्भय सिधार।।12।।
‘अहिनगु’ आत्मज जो देवनीक का था मधुभाषी मिलनसार।
मोहित हरिणों सम अरि भी जिसको वाणी वश करते थे प्यार।।13।।
वह वैभवशाली वीर ‘अहिनगु’ शासक था निर्मल उदार।
था युवा किन्तु नीचों दुर्व्यसनों से था दूर, नित निर्विकार।।14।।
वह निपुण पारखी पिता बाद, विष्णु सा अतिशय पूज्य मान्य।
बन गया नीतियाँ अपना कर, चारों दिक, का शासक महान।।15।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈