॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (16 – 20) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -18
तब गये अहिनगु लोक त्याग, ‘परियात्र’ उठा सिर नग समान।
राजा हुये वैभवयुक्त सफल, निज पिता अहिनगु से महान।।16।।
पारियात्र पुत्र ‘शिल’ नामक था, जिसका था वक्षस्थल विशाल।
उसने अरियों को जीत बाण से भी, निज रक्खा विनत भाल।।17।।
तब विनत विवेकी युव ‘शिल’ को युवराज बनाकर राजा ने।
सुख पाया क्योंकि वैसे तो आती रहती सुख बाधायें।।18।।
आतृप्ति विषय-भोगो में तो, यौवन में लगती सुखदायी।
सौंदर्य-भोग में अक्षमता पर वृद्धावस्था नित लाई।।19।।
उस ‘शिल’ राजा का पुत्र हुआ ‘उन्नाभ’ जो था निश्चय गँभीर।
था विष्णु सदृश राजाओं के समुदाय में अनुपम धीर-वीर।।20।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈