॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (21 – 25) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -18

 

फिर इंद्र वज्रधारी के वज्र सम करता जो था गहन घोष।

उस वज्रनाम उन्नाभ-पुत्र ने बन नृप पाला रत्नकोष।।21।।

 

जब ‘वज्र-नाभ’ भी नहीं रहे तब ‘शखंण’ उनके पुत्ररत्न।

ने धरती पर कर राज्य, पाये धरती से मणिधन बिना यत्न।।22।।

 

शखंण के निधन पर व्युषिताश्व ने पाया राज्य अयोध्या का।

सागर तीरों पर थे जिसके अनगिनत अश्वदल औ योद्धा।।23।।

 

कर विश्वनाथ का आराधन पाया था विश्व-सह सुत उसने।

जो मित्र था दुनियां का, सक्षम था विश्व का पालन करने में।।24।।

 

वह ‘विश्वसह’ हुआ असह्य शत्रुओं को ज्यों अनल अनिल तरू को।

हिरण्याक्ष शत्रु भगवान विष्णु सम हिरण्याभ पाकर सुत को।।25।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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