॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (6 – 10) ॥ ☆
सर्ग-19
कमलिनी का पा गंध जैसे कि गजराज उन्तत्त हो आप आ जाता सर में।
वैसे हि मधुगंध पा अग्निवर्ण भी रमणियों के संग आ घुसा मझधर में।।11।।
वहां अकेले में, नशे में खो सुध-सुध पिया उससे जूठी सुरा सुन्दिरियों ने।
बकुल वृक्ष सा उसने भी अनेक मुख की सुरा पी बिकल हो विवश इन्द्रियों से।।12।।
सदा मोह में मोद देती थी उसको कभी या तो वीणा कभी कामिनी या।
मधुर भाषिणी सुखद है दोनों निश्चित, हृदय में समाती जो संगीत स्वर गा।।13।।
जब अग्निवर्ण खुद बजाता था तबला, तो हिलता वलय था औ’ थी कण्ठमाला।
हर लेता था मन, वो यों नर्तकियों को कि शरमा के रह जाती थी रम्यबाला।।14।।
करते हुये नृत्य श्रम से पसीने से पुँछ गये तिलक वाली नृत्यांगना को।
मुँह की हवा दे, पसीना सुखा चूम लज्जित किया उसने तो वासना को।।15।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈