॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (36 – 40) ॥ ☆
सर्ग-19
एकान्त में स्त्रियों पै दिखा तीनों आंगिक व वाचिक व सात्विक विधायें।
अभिनय की, मित्रों के सम्मुख प्रतिष्ठिक की नाटक की अपनी कुशल योग्यतायें।।36।।
पहन कुटज-अर्जुन की मालायें वर्षा में, अँगराग करके कदम का परागण।
मयूरों से परिपूर्ण कृत्रिम वनों में बिताता था उन्मत्त हो वह सुखद क्षण।।37।।
कर मान मुँह फेर लेटी हुई माननियों को न वर्षा में वह था मनाता।
वरन धनगरज से विडर-चिपटने की, छाती में उनकी थी आशा लगाता।।38।।
कार्तिक की रातें खुली छत्त पै महलां की, सुमुखियों के संग वह था रति में बिताता।
जब श्रम मिटाने खुले नीलनभ से सुखद चाँदनी का था आनंद पाता।।39।।
वह अपने महलों से सुन्दर गवाक्षों से शोभा निरखता था सरयू शुभा की।
जिसके खुले रेणु तट पै बलाकायें दिखती थी रमणी जघन मेखला सी।।40।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈