॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (41 – 45) ॥ ☆
सर्ग-19
अगरु-गंध रांचे लहरते वसन झीने, झलकती थी जिससे सहज स्वर्णस्शना।
अग्निवर्ण को खेलता नीबि से जो, पहन मोहती सी थी कटिक्षीण अंगना।।41।।
वह महलों के बंद कमरों में एकान्त रचता था प्रिय-रुचि के व्यापार सारे।
साक्षी शिखिर रजनियां जिसकी केवल अचल दीप लो के नयन के सहारे।।42।।
मलय पवन पोषित नवल आम्रपल्लव औं, मधु मंजरी को खिला देख मानिनि।
ने तज मान उस विरही नृप को, मनाया जो था बिताता सब समय सपने गिन-गिन।।43।।
बिठा झूले में सुन्दरियों को ले गोदी वह सेवकों से था झूला झुलवाता।
भय वश भुजा डाल थी जो चिपकती वह उनके संश्लेष का सुख था पाता।।44।।
कर लेप चंदन का वक्षों पै अपने मुक्ताओं की पहन कर गले माला।
मणि रसना, कर ग्रीष्म की वेशभूषा, शीतोपचारों से युक्त थी सभी बाला।।45।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈