श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’

(श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ जी  द्वारा गणित विषय में शिक्षण कार्य के साथ ही हिन्दी, बुन्देली एवं अंग्रेजी में सतत लेखन। काव्य संग्रह अंतस घट छलका, देहरी पर दीप” काव्य संग्रह एवं 8 साझा संग्रह प्रकाशित। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने पाठकों से साझा करते रहेंगे।  आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “वन गंध की सुवास  पर…”।) 

☆ “वन गंध की सुवास  पर…” ☆ श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ ☆

(गीतिका  –  2212      2212)

चलता रहा विकास पर ।

नव सूर्य के उजास पर ।।

 

जब लेखनी चली ढ़ली

रचना रची प्रयास पर ।।

 

बँधता गया निशब्द सा।

उस प्रेम के विलास पर।।

 

बौरा रहा मधुप सखी।

वन गंध की सुवास पर ।।

 

लाली धरी मधुर अधर ।

मुस्कान थी सुहास पर ।।

 

मुखरित हुआ उत्पात तब।

बातें रही समास पर।।

 

आकंठ मैं गई उतर।

सुन “स्नेह” की मिठास पर।। 

© प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ 

संपर्क – 37 तथास्तु, सुरेखा कॉलोनी, केंद्रीय विद्यालय के सामने, बालाकोट रोड दमोह मध्य प्रदेश

ईमेल – plupadhyay1970@gmail:com  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments