श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “खामोशी” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

खामोशी की भी एक कहानी है

उसकी भी एक जुबानी है

कहती है सब बिना कहे

समझती है सब बिना सुने।

 

जिसे दर्द है निगाहों का

खामोशी बने मरहम दिल का

जिसे है नशा जिंदगी का

खामोशी जहर है उसका।

 

खामोशी मेरी बहुत जिंदा है

चलाती यादों का कारवां है

मुझसे सब कुछ बोल तो देती है

मगर मेरी कुछ सुनती नहीं है।

 

और उधर है तुम्हारी खामोशी

बन बैठी है एक आदत पुरानी

जैसे जलती है कोई बाग सुहानी

बनी है जैसे मेरे मौत की निशानी।

 

मगर ठीक है,

खामोशी तो खामोशी सही

है आखिर वह भी एक जुबानी

उसी बहाने कुछ तो सुनाती हो

शुक्र है,

चिता नहीं जिंदा जलाती हो।

 

© श्री आशिष मुळे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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