प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ कविता ☆ “ईश्वर के प्रति” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
तुमसे ही है दिव्यता, ऐ मेरे भगवान।
अंतर में शुचिता पले, तो हो प्रभु का भान।
अविश्वास कर दूर, विधाता को पहचानो।
चिंतन का उत्थान, ईश में खोना जानो।।
रख सच का संसार, करो दूरी तुम ग़म से।
सपने हों साकार, चेतना कहती तुमसे।।
खिलता है जीवन तभी, जब है उर निष्पाप।
कर्म अगर होते बुरे, तो जीवन अभिशाप।।
तो जीवन अभिशाप, विचारों को शुचि रखना।
अविश्वास बेकार, सदा उजले बन रहना।।
जब सच का संसार, उजाला तब ही मिलता।
हर पल बिखरे हर्ष, खुशी से जीवन खिलता।।
मानवता की राह चल, मानव बने महान।
कर्मों में हो चेतना, तो हर पल उत्थान।।
तो हर पल उत्थान, दया-करुणा को वरना।
कहते हैं जो धर्म, उसी पथ पर पग धरना।।
मिलते तब भगवान, नहीं किंचित दानवता।
अविश्वास पर मार, संग में तब मानवता।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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