श्री संजय सरोज 

(सुप्रसिद्ध लेखक श्री संजय सरोज जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आप वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर, (स्टेट-जी एस टी ) के पद पर कार्यरत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  भावप्रवण कविता  – “एक नदी की मौत …)

☆ कविता ☆ ? एक नदी की मौत … – दो कविताएं ??

नदी के चेहरे को मलती दूधिया रोशनी,

 और उसके चेहरे पर बरसता जीवन रस,

 जैसे-जैसे बरसता जाता जीवन रस,

 वैसे वैसे और थिरकती, उछलती, नाचती नदी ,

और रेंवे* तेज कर देते अपना संगीत।

 

 शांत हो गई है अब नदी,

 फैल गई है उसके चेहरे पर रक्तिम आभा ,

आ गए हैं पलकों के नीचे लाल लाल डोरे

 शायद सोने जा रही है नदी,

  थक जो गई है रात के करतब से ।

 

पर उसे जगायेंगे,

 हां ! अब हम उसे जगायेंगे,

 और पोतेंगे उसके चेहरे पर  चर्म रस , अम्ल रस,

 और मलेंगे मल रस,

 और खिलाएंगे प्लास्टिक और कांच बेशुमार,

 अभागों ! बदरंग और कुरूप हो जाएगी यह नदी,

 हाय! मर जाएगी यह नदी….

 

*रेंवे=एक प्रकार का कीडा जो नदी के पास रहता है और रात मे आवाज करता है।

©  श्री संजय सरोज 

नोयडा

मो 72350 01753

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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