सुश्री प्रणिता खंडकर
☆ कविता – “तुम अचानक न आना…” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆
(काव्यसंग्रह ..अलवार)
☆
मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना,
इज्जत को मेरी, ना दाँव पे लगाना|
मेहमानियत में तेरी, ना रहे कोई कमी,
इसीलिए आने की, खबर जरूर करना|
मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना!
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खबर जो मिलेगी, बुला लूँगी सबको,
मस्ती भरे गीत, सुना दूँगी तुझ को,
महफिल से सारी मिला दूँगी तुझ को,
कही भूल न जाऊँ, किसी को बुलाना,
मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना |
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दोस्तों से कर लूँगी, चंद बातेंं,
मिटा दूँगी दिल से, सारे ही शिकवे,
मिल जाएंगे सारे, अपने-परायें,
वजह ना हो कोई, तुम्हें पडे न रूकना,
मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना |
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मेरे छोटे दिल में, समाओगी कैसे?
मेरे अपने सारे, तो साथ ही होंगे,
दिल में सभी के ही, तुम बस जाना,
मोहलत इतनी ही, तुम जरूर देना,
मेरे घर, खुशी तुम, अचानक न आना |
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© सुश्री प्रणिता खंडकर
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